जब जब पृथ्वी पर धर्म की हानि होती है , संसार पीड़ित होता है , लोग आहत होते है , तो स्वयं प्रभु नर रूप में धर्म की स्थापना और अधर्म का नाश करने के लिए अवतरित होते है ।
अब बात आती है कलयुग के अवतारों अर्थात युग पुरुषों की जो मनुष्य रूप में आकर अपने संदेशो द्वारा युग धर्म को निभाया और दुनिया को एक नयी दिशा दी , जिन्हें हम प्रेरित-पुरुष , पैगम्बर या प्रोफेट (Prophet) के रूप में मानते है ये हैं प्रभु यीशु , हजरत मोहम्मद, बुद्ध देव, चैतन्य महाप्रभु , रामकृष्ण परमहंस देव और श्री श्री ठाकुर अनुकूल चन्द्र जी । इस कलयुग में ईश्वरीय शक्ति ने बहुत से युग पुरुषों को भेजा जिसमे बहुत से संत भी आये जैसे गुरु नानक देव , कबीर , संत रविदास , तुलसीदास आदि संत और सदगुरु । इस काल में भारतीय समाज बहुत ही दयनीय स्थिति में था जिसे इन संतों ने वाणी और कर्म के माध्यम से पाला-पोसा और आगे बढाया । इस युग के सभी लोग रामायण, गीता, वेद और पुराण सब भूल चुके थे । उस समय इन्ही संतो ने मोर्चा सम्भाला ।
कहा जाता है कि जब जब प्रभु इस धरा धाम पर आये उनके आने के पहले ऋषियों और संतों ने आकर उनका अलख जगाया और उनके अभिर्भाव की पृष्ठ भूमि तैयार की । जिसमे माता - पिता भी शामिल है क्योंकि बिना उत्तम खेत और बीज के उत्तम फसल नहीं हो सकती है । हजारों संतो ने लोगो को खुदा - ईश्वर एवं जीव - जगत से प्रेम करना सिखाया । संतो ने हर जगह प्रेम की पुण्य-धारा बहाया जिससे लाखो लोग इनसे जुड़े और ईश्वर तत्व को जाना और अनुभव किया ।
भारत की मिट्टी एक ऐसी मिट्टी है जहाँ आदि काल से ऋषि - मुनियों, संतों और महापुरुषों ने जन्म लिया और इस धरती को धन्य-धन्य किया । परन्तु ये कहा जाय कि ये केवल भारतवासियों के लिए आये तो गलत होगा , अपितु ये सम्पूर्ण मानव जाति, जीव-जगत एवं विश्वकल्याण के लिए आये । जो भी इनकी शरण में गया इन्होंने उसको प्रेम से गले लगाया, इन्होने सभी को ईश्वर का अंश मानकर प्रेम किया । इनके अनन्य शिष्यों और भक्तो ने उनके विचारो को जन-जन तक पहुँचाया जिससे संसार लाभान्वित हुआ ।
वर्त्तमान युग पुरुष श्री श्री ठाकुर अनुकूल चन्द्र जी का जन्म ब्रिटिश भारत के बंगाल के पावना जिला के हिमाईतपुर ग्राम में (वर्त्तमान बंगला देश) ईसवी सन 1888, 14 सितम्बर , दिन शुक्रवार , प्रात: 7 बजकर 5 मिनट पर एक सदाचारी ब्राम्हण कुल में हुआ । माता का नाम मनमोहिनी देवी और पिता का नाम श्री शिवचन्द्र चक्रवर्ती था । श्री श्री ठाकुर 12 महीने माता मनमोहिनी देवी के गर्भ में रहने के बाद जन्म लिए थे । जन्म के समय रोये नहीं थे बल्कि मुस्कुराये थे । किसी सन्यासी की भांति सिर मुंडा हुआ था जो की आज के वैज्ञानिक युग के लिए एक चमत्कार से कम नहीं था । पिता श्री शिवचंद्र चक्रवर्ती के घर में जन्म के समय सुबह दिव्य ज्योति निकल रही थी जिसे अड़ोसी -पडोसी और उस समय खेत में काम कर रहे लोगो ने जब उस दिव्य ज्योति को देखा तो समझे की बाबा जी के घर में आग लग गई है जिसे बुझाने के लिए ये लोग हाथ में बाल्टी से भरी पानी लेकर घर की ओर दौड़े जब बाबा जी के घर में प्रवेश किया तो देखा की दिव्य ज्योति में लिपटा एक बालक मुस्कुरा रहा है । सभी ने आश्चर्य किया, देखा की दिव्य ज्योति धीरे धीरे सिमट रही है । इस घटना को प्रसव गृह में उपस्थित सभी स्त्रियों ने भी देखा था । जो हमें सिर्फ भगवान श्री राम और श्री कृष्ण के समय की जन्म की घटना में ही सुनाने को मिलता है । जन्म के बाद प्रभु ने असंख्य लीलाएँ की । जिसे आप आगे की कड़ी में पढ़ते रहेंगे। आज श्री श्री ठाकुर के विश्व के सभी देशों में शिष्य और भक्त मिल जायेंगे और आजकल प्रतिदिन हजारों लोग श्री श्री ठाकुर का शिष्यत्व ग्रहण कर रहे है ।
जब देश में श्री श्री ठाकुर के अवतरित पुरुष के रूप में चर्चा चली तो बहुत से विचारक , वैज्ञानिक, नेता , चिकित्सक, भगवान के भक्त, साधु - सन्यासी आदि पावना पहुँचने लगे युग पुरुष के दर्शनार्थ जिसमे से महात्मा गाँधी, डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद, श्यामाप्रसाद मुखर्जी , लाल बहादूर शास्त्री, देशबंधु चिरंजन दास, सुभाष चन्द्र बोस आदि व्यक्तियों ने समय समय पर श्री श्री ठाकुर के विचारो से रूबरू हुए और लाभ भी उठाया । जिनमे से लाल बहादूर शास्त्री, देशबंधु चिरंजन दास, और सुभाष चन्द्र बोस के माता- पिता ने श्री श्री ठाकुर का शिष्यत्व ग्रहण किया । उन्होंने कभी भी स्वयं को अवतार या भगवान या ठाकुर कहलवाना पसंद नहीं किया, अपितु उन्हें इन शब्दों से पीड़ा होती थी । लेकिन भक्त नर रूपी नारायण को आखिर पहचान ही जाते है । श्री श्री ठाकुर ने भारत ही नहीं अपितु विश्व को अपनी दिव्य-ज्योति और वाणियों से आलोकित किया । वे लोग परम सौभाग्यशाली है जिन्हें श्री श्री ठाकुर का सानिंध्य मिला । परम पुरुष ने विश्व को वर्त्तमान युग में जीवन जीने का तरीका सिखाया , धर्म की एक नयी परिभाषा दी, वे कहते है :-
"धर्म में सभी बचते बढ़ते, सम्प्रदाय को धर्म न कहते " ।
अर्थात धर्म एक है जिसमे सभी बचते है बढ़ते है और पोषित होते है ।
श्री श्री ठाकुर ने व्यक्ति, दम्पति , परिवार , समाज और राष्ट्र निर्माण सभी के लिए कार्य किया । उन्होंने अपने शिष्यों को इसे इष्ट कार्य बताया । इनके असंख्य शिष्य तन -मन -धन से इस इष्ट कार्य में लगे हुए है । उन्होंने पहला सत्संग आश्रम हिमाईतपुर पावना में स्थापित किया । करोडों रुपये व्यय कर तथा हजारो मनुष्यों ने दिन रात कठिन परिश्रम कर भव्य विज्ञानशाला, तपोवन विद्यालय, मातरि-विद्यालय, रसायन शाला, वृहद् सत्संग प्रेस, इंजीनियरिंग कारखाना, आनन्द बाजार (भंडारा) आदि बहुत से क्रियाकलाप राष्ट्र-निर्माण के व्यावहारिक आदर्श प्रस्तुत कर रहे थे । परन्तु त्रिकाल दर्शी प्रभु को देश की अमंगल का चित्र आपके पारदर्शी मस्तिस्क में अंकित हो गया । यह घटना सन 1946 की है जब आप अचानक व्याकुल सा हो गए और अपने एक शिष्य से देवघर (बैद्यनाथ धाम ) बिहार (वर्त्तमान में झारखण्ड)आने का विचार प्रकट किया । और बिना किसी से कहे सुने हठात आपने ट्रेन की एक स्पेशल बोगी बुक कर कुछ सत्संगियों के साथ करोडों कि सम्पति छोड़ सब कुछ बिशेष लोगो के हवाले कर के आप देवघर पहुँचे । फिर से एक नया सत्संग आश्रम की स्थापना की जो अभी तक आचार्य दादा के निर्देश से द्रुत गति से चल रहा है । जिस अमंगल की आशंका से श्री श्री ठाकुर पावना छोड़ कर देवघर आये थे वह अमंगल देश टाल न सका । एक साल बाद पुरे बंगाल में और देश में दंगा मार काट हुआ देश का विभाजन हुआ जिसे सारे देश ने देखा । इसे आप क्या कहेंगे ? बहुत से लोगों ने श्री श्री ठाकुर से पूछा कि दयाल आप आखिर पावना क्यों छोड़ के जा रहे है ? , इस महामानव ने सब जानते हुए भी अपनी जुबान नहीं खोली , सिर्फ यही कहते रहे की जिसे मेरे साथ चलना है चलो नहीं तो यही रहो अब मैं यहाँ नहीं रहूँगा । अपने जन्म स्थली छोड़ के एक निर्दयी की भांति ठाकुर चल दिए अपने कर्म क्षेत्र की ओर ।